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9.5.18

डावीयाल (राजपुरोहित) गौत्र एवं सालावास गांव का इतिहास







          झुँझार श्री गुमान सिंह जी डावीयाल

          आज से करीब पास 832 ईस्वी के लगभग जिस समय मंडोर राज था, और मंडोर में पड़िहार प्रतिहारो का शासन था
उस समय राजपुरोहित दूदा जी कुटुंब सहित पधारें और जोजरी नदी के पास, वर्तमान सालावास की घड़ाई नाडी के पास दूदाखेड़ा नाम से गांव बसाया वहां सतीत्व की रक्षा हेतू राजपुरोहित समाज की सात सतीया भी हुई थी,
मंडोर राज में प्रतिहारों के राज्यगुरु डावीयाल थे करीबन 300 साल तक मंडोर राज में इस पद रहे फिर मंडोर राज में राठौड़ों का शासनकाल आया
       उस समय कुलदेवी हिंगलाज माता जो कि दूदो जी राजपुरोहित पीलोङा से अपने साथ लाकर यहां सालावास की भाकरी में स्थापित किया था जो कि डावीयाल राजपुरोहितों की कुलदेवी थी
हिंगलाज माताजी ने दूदो जी के वंशज सेलो जी राजपुरोहित को सपने में आकर बताया कि आप मेरी पीठ यानी कि पीछे बसे हुए हो, आप मेरे सन्मुख आकर बसो जिससे उद्धार होगा
करीब 1392 के आसपास सेलो जी राजपुरोहित ने भाकरी के मुंह के आगे वर्तमान में राजपुरोहितों का बास सालावास वहां आकर समस्त कुटुंब रहने लगे और सालावास नाम से गांव बसाया गया उसके बाद अन्य जातियां भी धीरे-धीरे सालावास में आकर निवास करने लगी।
डावीयालो को मारवाड़ राज्य मे राठौङो के राज में जागीरी प्राप्त थी! करीब 400 साल तक  सालावास की जागीरी राजपुरोहितो के पास रही। सालावास व आसपास मारवाड़ राज्य के लिए लाटा लाटतेे थे यानि कि कर वसूलते थे व मारवाड़ राज्य में कामदार व पदाधिकारी थे मारवाड़ राज्य से राजपुरोहितो को जागीरदारी का ताम्रपत्र मिला हुआ था
श्री मोड़सिंह जी राजपुरोहित मेहरानगढ़ किले के कामदार और कोषाध्यक्ष थे पोकरण और आउवा ठाकुर के किसी मतभेद के कारण उन पर संगीन आरोप लगाए गए थे जिस कारण उन्होंने आत्मदाह कर लिया था जिसका प्रमाण आप श्री दाता की छतरी पुरोहितो का बास सालावास में मोड सिंह जी की छतरी आज भी विद्यमान हैं
     इस घटना से क्षुब्ध होकर सालावास के राजपुरोहितों ने जागीरदारी का जो ताम्रपत्र मारवाड़ के महाराजा को होकर सुपुर्द किया, और कर वसूलने का काम बंद कर लिया
     उसके बाद यह काम करनोत सिरदारो को दिया गया पर ब्रह्मवंश द्वारा त्यागी गयी जागीरदारी लेने के कारण उनकी वंश वृद्धि नही हो सकी; सालावास में बना हुआ कोट इसका प्रमाण है!
उसके बाद मारवाड़ के राजा मानसिंह के शासनकाल में नाथों का प्रभाव ज्यादा था तब मान सिंह जी गावं नाथों को दिया गया! नाथो में कुछ लोग आतताई और क्रूर थे सालावास और आसपास के गांवों में क्रूरता और अत्याचार कर रहे थे! इर्द गिर्द सा सारा इलाका उनसे त्राहिमाम करने लगा!
तब अपने गांव में अत्याचार को देखते हुए  अपने गांव के लिए झुंझार श्री गुमान सिंह जी राजपुरोहित उनके विनाश के लिए निकले.! शुरापणा चढ़ने पर गुमान सिंह जी ने एक हाथ से अपना सिर काट कर लिया और एक हाथ में तलवार लेकर आतताई नाथों का पतन करने के लिये लङने निकले। सालावास से किले तक धरणी रक्त रंजित हो गयी! आतताइयों के  कटे हुए मुंड ही मुंड उनके कुकर्मो की गवाही दे रहे थे..!
उन्होंने कहा कि नाथ तो बळद री कोनी राखु और  क्रूर नाथों को मारते मारते किले तक पहुंच गए थे तब महाराजा मानसिंह जी तक शूरवीरता को देखकर अचंभित हो गए तब दाता श्री गुमान सिंह जी पर गुड़ी का छांटा डालकर उनके धड़ को शांत किया गया
तब जाकर वह शांत हुए.!
तब से नाथ भी झुंझार गुमान सिंह जी को पूजने लग गए ।
गुमान सिंह जी की देह को एक नाई और भाटी सरदार सालावास में लेकर आए थे राजपुरोहित द्वारा दादोसा की छतरी का निर्माण करवाया गया आपका परसा आज भी आस पास के क्षेत्र में छावा है।
आप की छतरी महाराजा मानसिंह जी ने मेहरानगढ़ किले के पास बनाई।
नाथों द्वारा पाल गांव में गुमान सिंह जी की छतरी बनाई गई और पूजा आज भी करते हैं
और एक की धङ आई थी यहा सालावास मे भाकरी के पास झुंझारजी गुमान सिंह जी की मूल छतरी है जिस पर शिलालेख भी खुदा हुआ है।
बाद में भाटी सरदार व नाई जो दादोसा कि देह सालावास लेकर पधारे थै उन्हे  सालावास गांव में बसा लिया गया, आप भाटी सरदारों के घर आज भी राजपुरोहितो के बास में आपसी प्रेम से मिल जुलकर रहते है।
सालावास गाँव कि जागीरी राजपुरोहितो के पास
पङियार शासन काल मे 300 साल
व राठौङो के काल मे 400 साल रही ।
झुंझार जी गुमान सिंह जी द्वारा झुंझने के कारण किसी और को सालावास की जागीरी नही दे सके और उसके बाद सालावास गांव को खालसा का घोषित कर दिया गया
माताजी कुलदेवी हिंगलाज माताजी जो कि दुदो जी अपने साथ लेकर आए थे उनकी पूजा का काम बाद में भारती को दिया गया
डावियाल राजपुरोहित का मूल गांव सालावास ही है डावियाल गोत्र के जितने भी राजपुरोहित हैं वह सब सालावास गांव से ही उठे हुए है
🙏
नोट_ संकलित जानकारी ये राव व भाट के बही व दादोसा श्री गुमान सिंह जी की छतरी पर लिखे शिलालेख और मारवाड़ परगने का इतिहास काव्य के आधार पर है ।

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3 comments:

  1. आप की छतरी महाराजा मानसिंह जी ने मेहरानगढ़ किले के पास बनाई ये कहा पे हे क्यू की मेहरानगढ़ के पास गुमान सिंह अखेराजोत की छतरी हे सा

    ReplyDelete
  2. फींच गांव (जोधपुर)और होटलू गांव(बालोतरा, बाड़मेर) का इतिहास अथवा फींच गांव और होटलू गांव के राजगुरु राजपुरोहित का इतिहास बताइए हुक्म

    ReplyDelete
  3. Anonymous11:28:00 PM

    Bhai ji ham bhi vahi salavas se karola sanchor or sanchor se bagsari aaye the

    ReplyDelete

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